Monday 29 November 2010

अगर आप स्कूली शिक्षा में तीन चीज़ें ही बदल सकते, तो वे क्या होतीं?

पिछले दो दशकों से शिक्षा में सुधार पर काम करते-करते अब हमारे पास इतने ज्यादा विचार / सुझाव हो गए हैं कि समझ ही नहीं आता कि इस गुत्थी के छोर किस ओर है! इसीलिए आप से पूछ रहा हूँ कि आप अगर तीन चीज़ें ही बदल सकते, तो वे क्या होतीं? अगर कई लोगों को कुछ बदलाव ज़रूरी या शुरुआत के लिए अच्छे लगते हैं, तो हो सकता है कि हमें दिशा मिले.

अतः, आप के सुझाव आमंत्रित हैं, कृपया इस मामले में कंजूसी ना दिखायें, जल्द ही सोचें और लिखें. [आप अंग्रेजी लिपि में हिंदी लिख सकते हैं, कमेंट्स के लिए विचार चाहिए, अंग्रेजी नहीं!]

क्या होता है 'बेहतर स्कूल'?

यह भी कोई सवाल हुआ? अरे भाई, बेहतर स्कूल वही है जो अच्छा स्कूल होता है. जहाँ अच्छी पढाई होती है, बच्चे और शिक्षक और माँ-बाप सब स्कूल से खुश हैं - यही तो हुआ ना बेहतर स्कूल?

दुर्भाग्य से इस मासूम परिभाषा के दिन पूरे हो चुके हैं. 'मासूम' इसलिए क्योंकि बिना ख़ास सोचे समझे कुछ बातें कह दी गयीं - इनके पीछे की गहराइयों को नहीं समझा गया. साथ ही, यह परिभाषा ऐसी है कि इसे पढ़ कर कोई समझ नहीं सकता कि आखिर करना क्या है? आप समझ पाए? मैं तो नहीं समझ पाया! नहीं, ऐसी परिभाषा चाहिए है जो केवल शब्दों में न रहे, बल्कि जिसे ठोस कदमों में बदला जा सके. और अब शिक्षा के अधिकार कानून आने के बाद तो यह और भी out-dated (पुरानी) हो चुकी है.

आज के सन्दर्भ में, अगर 'अच्छे' या 'बेहतर' स्कूल की ओर बढ़ना है, तो आगे दी गई बातों पर ध्यान देना होगा. [आगे बढ़ने के पहले एक कॉपी लें ताकि ज़रूरी बातों को लिखते रह सकें, यहाँ दिए गए सवालों के जवाब भी नोट कर पाएं.]


एक शिक्षक ने कहा,'मेरा स्कूल बिल्डिंग में नहीं है. वह तो उसमें है जो मेरे बच्चों और मेरे बीच होता है. और कोई उसे तोड़ या चुरा नहीं सकता!'

बात गहरी है, और 'अच्छे स्कूल' की परिभाषा के लिए अहम् भी. [आगे पढ़ कर लिखें कैसे]


तीन पहलुओं को मिल कर बनता है एक स्कूल. ये हैं -
- नतीजे
- प्रक्रियाएं
- सम्बन्ध

सिर्फ तीन? आप सोच रहे होंगे कि इतने से हो जाएगा काम? देखिये आगे कि क्या निकल कर आता है इनसे.

नतीजे
आम तौर पर इस पहलू को सभी देखते हैं - परीक्षाफल कैसा है आपका? अगर अच्छा तो ज़रूर स्कूल अच्छा होगा. फिर वही मासूम टाइप की बात! यह तो आप जानते ही हैं कि रिज़ल्ट चीटिंग कर के या पिटाई का भय दिखा कर भी लाये जा सकते हैं.

पर इस से भी ज्यादा ज़रूरी है कि किस तरह के नतीजे आप को सच में चाहिए हैं. क्या आप चाहते हैं कि आप का कोई छात्र गणित में तो बहुत अच्छा हो लेकिन इन्सान की तरह बिलकुल बेकार? या आप चाहते हैं कि परीक्षा में छात्र अच्छे अंक लायें ही, भले ही वे अपनी सीखी बातों को जीवन में या वास्तविक स्तिथियों में उतार पाएं या नहीं?

और फिर विषयों के अन्दर भी तो सीखने के बहुत सारे स्तर होते हैं. जो ज्यादा अहम् बातें हैं या उच्च-मानसिक स्तर वाले लक्ष्य हैं, क्या उन्हें अधिक महत्व नहीं दिया जाना चाहिए? लेकिन कई पहलू ऐसे हैं (जैसे कि वैज्ञानिक मानसिकता, या प्रयोग कर पाने की क्षमता या मौलिक अभिव्यक्ति या तथ्यों के बीच अंतर्संबंध पहचान पाना) जो महत्वपूर्ण होते हुए भी आंके नहीं जाते, अतः विकसित भी नहीं किये जाते.

तो अपने पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने आप से पूछें (और नोटबुक में लिखें!):

  • सच में क्या है जो महत्वपूर्ण है और जो हम चाहते हैं कि बच्चों के अन्दर सच में विकसित हो? 
  • क्या इसके लिए पर्याप्त मौके दिए जा रहे हैं? 
  • अगर नहीं तो आगे क्या करना चाहिए?

यहाँ पर आप के जवाब बड़े ही महत्वपूर्ण हैं - वे तय कर देते हैं कि आप के स्कूल के 'अच्छा' स्कूल बनने की सम्भावना है भी कि नहीं!

एक बार इन सवालों पर आप अपनी सोच स्पष्ट कर लेते हैं तो अगला और स्वाभाविक सवाल होगा - तो ये सब होगा कैसे? और यह पहुंचा देता है हमें अपने अगले पहलू की ओर - प्रक्रिया!

और इस पर लिखूंगा अगली पोस्ट में!