Tuesday 12 October 2010

कैसे रिसोर्स पर्सन नहीं बनें

जब भी शिक्षा में दिशा तय करने की कोशिश होती है तो दो अलग तरह के स्रोतों पर जोर होता है. पहला तो है, शिक्षा के पितामाह किस्म के सीनियर लोग, जो कि आस्था चैनेल की तरह लम्बे-लम्बे प्रवचन देतें हैं और माना जाता है कि हम नादान लोगों को इससे प्रेरणा व दिशा मिलती है. आजकल इनके कुछ छोटे भाई भी हो गए हैं, जिन्हें हम मठादीश की उपाधि देंगे -- ये किसी एक विचारधारा के समर्थक होते हैं और मानते हैं कि जो भी इनके दायरे में नहीं आता, वह तो बात करने लायक भी नहीं है. कुल मिला कर ये दोनों तरह के लोग भक्तों की तलाश में रहते हैं. कहीं ना कहीं यह धारणा भी रहती है कि ये सच में बहुत कुछ जानते हैं और बाकी लोग दिमाग से कमज़ोर हैं.

दूसरा स्रोत है - आंकड़े-धारी लोग. इनके पास तरह-तरह की जानकारी होती है - बच्चों, शिक्षकों, स्कूलों, आदि के बारे में. इनकी नज़र में प्लैनिंग व क्रियान्वयन के मुख्य ध्येय है व्यवस्था को सही आकड़ों तक पहुँचाना. इनकी दृष्टि में भी आम आदमी व उसके कार्य मात्र एक माध्यम हैं - वही सही आकड़ों तक पहुँचने में.

आगे तो आप समझ ही गए होंगे कि हमें कम से कम इस तरह के रिसोर्स पर्सन तो नहीं ही बनना चाहिए. तो फिर किस तरह का रिसोर्स पर्सन बनना चाहिए ? इसके बारे में लिखेंगे अगली बार!

No comments:

Post a Comment